नई आपराधिक संहिता का मसौदा पेश हो रहा है। लेकिन, इसमें कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं

आईपीसी में, दर्ज 93% अपराध की धाराएं, उनकी परिभाषा और दंड तो आईपीसी से ही उठा लिए गए* हैं, और उन्हे नए नंबर की अनुक्रमणिका दे दी गई हैं। फिर इस नए संहिता की जरूरत क्या पड़ गई?

तृणमूल कांग्रेस के सांसद और राज्यसभा नेता डेरेक ओ ब्रायन, जो गृह मंत्रालय की स्टैंडिंग कमेटी में हैं, ने अपने 85 पेज की असहमति नोट में यह टिप्पणी की है कि,
“मौजूदा कानूनों को बदलने के लिए तीन विधेयकों पर गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति द्वारा व्यापक परामर्श की कमी ने पैनल को “संसदीय रबर स्टैम्पिंग समिति” में बदल दिया है।”

नए कानूनों की आवश्यकता पर भी सवाल उठाया जा रहा है कि, मौजूदा आपराधिक कानूनों में से 93% कानून अपरिवर्तित हैं। मौजूदा आईपीसी में भी यदि सरकार कोई संशोधन करना चाहती है तो, उसे बिना नई आपराधिक संहिता लाए परिवर्तन किया जा सकता है।

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