भाजपा की प्रत्याशियों की सूची वायरल होने के बाद ओपी के नाम को लेकर रायगढ़ विधानसभा में कई समाजों और गुटो में बैठकों का दौर शुरू

मीडिया टुडे न्यूज़। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर हाल फिलहाल में तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर किसी के द्वारा प्रत्याशियों की सूची के वायरल होने से प्रदेश के कई विधानसभा सीटों पर बगावत के स्वर उठने लगे है, वही सूची के वायरल होने से प्रदेश भाजपा शर्मनाक स्थिति में आ गई है जिसके कारण सूची आगामी प्रत्याशियों के नाम को लेकर अभी ठंडे बस्ते में डालने की बाते सामने आ रही है।

भाजपा का प्रदेश नेतृत्व सूची के वायरल होने से काफी नाराज़ हो गया है सूची में अंकित नामो को लेकर प्रदेश की कई सीटो पर बगावत देखने को मिल रही है ,वही रायगढ़ विधानसभा सीट में ओपी के नाम को लेकर काफी विरोध जारी है जिसे जिला भाजपा और प्रदेश भाजपा दोनो नज़र अंदाज़ कर रहे है? बताया जा रहा है कि ओपी चौधरी के नाम को लेकर रायगढ़ की जनता का मूड पहले ही बिगड़ चुका है चूंकि ओपी चौधरी के बाहरी होने की खबरे सोशल मीडिया में काफी वायरल हो रही है जिसके कारण जनता उन्हें चुनाव में नकार सकती है? मिली जानकारी के अनुसार सूची के वायरल होने के बाद भाजपा की दूसरी अधिकृत सूची श्राद्ध पक्ष के खत्म होने के बाद आने की संभावना भी व्यक्त की जा रही है।

रायगढ़ विधानसभा में ओपी चौधरी के बजाय विजय अग्रवाल और सुनील रामदास के नमो पर सहमति को लेकर क्षेत्र में चर्चा का माहौल काफी गरम है। सोशल मीडिया में सुनील रामदास को टिकट दिए जाने की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है। वही विजय अग्रवाल अखबारों और सोशल मीडिया में दूसरे नंबर पर बने हुए है। सूची के वायरल होने के बाद से ही क्षेत्र में विरोध के स्वर उठने लग रहे है? वही गुटीय राजनीति को देखते हुए गुप्त बैठकों का दौर शुरू हो गया है। जिले का कोलता समाज और अग्रवाल समाज अपने प्रत्याशी उतारने को लेकर बैठके कर रहा है इससे यह समझा जा सकता है की रायगढ़ विधानसभा में भाजपा अगर ओपी को टिकट देती है तो पार्टी की मुश्किलें और भी बढ़ सकती है। वहीं पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी से जिले की अन्य सीटे भी प्रभावित हो सकती है! बहर हाल पार्टी शायद रायगढ़ विधानसभा के प्रत्याशी की घोषणा बगावत के भय से तीसरी लिस्ट में जारी करने पर विचार मंथन कर रही है।

वायरल सूची के अनुसार अगर पार्टी टिकट का वितरण करती है तो ऐसा प्रतीत होता है की पार्टी में पहले ये नेता चुनाव लड़ते है फिर चुनाव के बाद संगठन में आ जाते है फिर चुनाव के समय पार्टी इन्ही लोगो को टिकट देती है ऐसी परिस्थिति में यह लग रहा है जैसे पार्टी में इन्ही चेहरे पर संगठन चल रहा है और ये ही लोग अगर चुनाव भी लड़ेंगे तो पार्टी में इनके अलावा जो पदाधिकारी या सक्रीय कार्यकर्ता है वह क्या सिर्फ कुर्सी और दरी लगाने के लिए है?  इस तरह की तमाम बाते सूची के वायरल होने के बाद प्रकाश में आ रही है जिससे 2023 का विधानसभा चुनाव भाजपा के जितने की संभावनाओं पर पार्टी को विचार करना होगा अन्यथा पार्टी की मुश्किलें सफलता से काफी दूर हो जायेगी?

पार्ट – 5

अभिषेक कुमार शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार / राजनीतिक विश्लेषक, रायगढ़ छत्तीसगढ़

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