वो और दौर था, जब हम शांति के कबूतर उड़ाकर पूरे संसार को विश्व बंधुत्व का संदेश दिया करते थे। हालांकि यह अवधारणा हिंदू धर्म की मूल चेतना ही थी। पर अब पुरानी परिभाषा से कम नहीं चलने वाला। यह नया दौर है। अब हम पुराने इतिहास को मनमुताबिक बदलकर नए दौर का इतिहास रच रहे हैं।
सौहार्द के मामले में हमारा पुराना रिकार्ड अब बीते दिनों की बात है। असहिष्णुता-कट्टरता के मामले में अब हम अफगानिस्तान बांग्लादेश और यहां तक कि चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान तक को मीलों पीछे छोड़ चुके हैं। भुखमरी और उधार लेने की रेटिंग में भी अपन अव्वल हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तो ख़ैर हमारी रेटिंग इधर कई दशकों से कभी नीचे खिसकी ही नहीं।
इससे पहले हम विश्वपटल पर अपनी उदारवादी छवि के लिए जाने जाते थे, पर समय रहते चेत गए और आज अथक प्रयासों के चलते हम कट्टरपंथी ताकतों के विस्तार के मामलों में मजबूती से उभर रहें हैं। आज मजहबी कट्टर देश भी हमसे पानी मांगते नज़र आ रहे हैं। अगर पाकिस्तान के लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा तोड़ी जाती है, तो हमारे यहाँ भी गांधी की प्रतिमा चंपारण के मोतिहारी में तोड़ दी जाती है। गांधी के देश में गांधी सुरक्षित नहीं इस बात को तो हम पहले ही सिद्ध कर चुके हैं। गरियाए तो रोज ही जाते हैं।
आज तो पौरुष जगह-जगह बिखरा पड़ा है। नारी शील संरक्षण और विपक्ष मुक्त भारत बनाने के मामले में यह पौरुष खूब दिखा। लोकतंत्र में हम अपनी बात पर कट्टरता से कायम रहते हैं। अब सर्वसहमति का कोई चक्कर नहीं। बस हमको स्वीकारो, नहीं तो धर्मद्रोही, देशद्रोही और न जाने क्या-क्या। दुनिया को अब हमारी कट्टरता का लोहा मानना ही पड़ेगा। सही बात है, हमारे होते हुए कट्टरता का सेहरा पाकिस्तान या अफगानिस्तान के सिर बंधे राष्ट्रीय शर्म की बात है। मौजूदा हाल में हम विश्व गुरू के रूट पर है और अगर इसी तरह चलते रहे तो मंजिल दूर नहीं।