अभिषेक कुमार शर्मा
सुप्रीम कोर्ट जिस तरह से चंडीगढ़ मेयर चुनाव मामले में सख्त हुआ, केवल उससे ही कोई बात नहीं बनने वाली? सख्ती के साथ यदि कार्यवाही भी हो, तभी माननीय कोर्ट का न्याय होता हुआ दिखाई देगा।
बीजेपी पिछले दस वर्षों से लगातार लोकतंत्र की हत्या ही तो करती आई है? इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा, कि यह सब सुप्रीम कोर्ट को दस वर्षों बाद दिखाई दिया? जब तक सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में अंतिम निर्णय न आ जाये, तब तक किसी के बारे में कोई राय बनाने से बचना चाहिए।
इससे पहले भी मनीष सिसोदिया मामले में ED पर सुप्रीम कोर्ट बेहद सख्त हुआ था, परन्तु अगली ही सुनवाई में उसने एकदम से नरम रुख अख्तियार कर लिया था। क्या पता, वो इस बार भी ऐसा ही करें? वर्तमान में बीजेपी देश की सबसे धनी राजनैतिक पार्टी है। जब धन व बल का गठजोड़ हो जाये, तो विपरीत निर्णय आसानी से नहीं होते? क्योंकि साम-दाम-दंड-भेद, नीतियां अपनाई जाती है।
सुप्रीम कोर्ट यदि वाकई इस मामले में गम्भीर है, तो उसे प्रसाइडिंग आफीसर के साथ-साथ चुनाव अधिकारियों की भी जिम्मेदारी तय करते हुए कठोर निर्णय पारित करना चाहिए व इस चैन से कितने लोग जुड़े है, यह भी पता लगाना चाहिए। तभी सफल न्याय होता हुआ प्रतीत होगा।