वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को चुनाव के दौरान रथ प्रभारी बनाना, आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन

सभी IAS को बधाई, अब आप कलेक्टर,कमिश्नर नहीं, “रथ प्रभारी” बनेंगे? कल आप “रथ चालक” भी बन सकते हो?

भारत के इतिहास ये पहली बार होने जा रहा है कि सिविल सेवाओं के अधिकारी, सरकार की ‘प्रोपोगंडा मशीनरी’ के हाथ का खिलौना बनेंगे?

विदित हो कि दिनांक 20 नवंबर 2023 से 25 जनवरी 2024 तक भारत सरकार “विकसित भारत संकल्प यात्रा” निकालने जा रही है, जाहिर सी बात है कि ये यात्रा लोकसभा चुनाव से पूर्व मोदी सरकार की पब्लिसिटी के लिए होगी।

..यानी चुनाव से पहले IAS अधिकारियों को सरकारी रथ पर बैठाकर केंद्र सरकार अपने कार्यों/कारनामों (झूठ ) का ढिंढोरा पीटने के लिए IAS अफसरों का इस्तेमाल/दुरुपयोग करेगी, चूंकि नेताओं के झूठ से तो ऊब चुकी जनता, शायद IAS के मुंह बुलवाई गई, झूठी-सच्ची बातों पर विश्वास कर ले?

भारत सरकार के पूर्व सचिव ईएएस सरमा ने भारत के चुनाव आयोग को एक बार फिर वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को “रथ प्रभारी” जो नरेंद्र मोदी सरकार की कथित उपलब्धियों के बारे में जानकारी फैलाएंगे, के रूप में उपयोग करने की केंद्र सरकार की योजना पर एक प्रतिवाद पत्र लिखा है!

ईएएस सरमा, जो खुद एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रहे हैं ने, पहली बार 21 अक्टूबर को ईसीआई निर्वाचन आयोग, को पत्र लिखकर कहा था कि, आयोग को, सरकार के इस निर्णय पर हस्तक्षेप करना चाहिए और इस सरकारी आदेश को रोकने के लिए आदेश जारी करना चाहिए। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि, ये निर्देश, आदर्श आचार संहिता के खिलाफ हैं। एक अन्य पूर्व आईएएस अधिकारी एम.जी. देवसहायम ने सरमा के पत्र का समर्थन किया है।

23 अक्टूबर, को भेजे गए अपने दूसरे पत्र में, ईएएस सरमा ने कहा है कि, “उन्हें उम्मीद है कि ईसीआई ECI ने उनकी शिकायत पर संज्ञान लिया होगा।” उन्होंने चार संबंधित मुद्दों की ओर इशारा किया, जिसमें यह भी शामिल है कि, इस तरह की गतिविधि में शामिल लोक सेवकों के पास मतदाताओं और चुनावी परिणामों को प्रभावित करने की शक्ति होती है।

सरमा ने तर्क दिया कि, ईसीआई का इस मामले पर कार्रवाई करना, आयोग का दायित्व और कर्तव्य है। उन्होंने पत्र में लिखा है, “अगर आयोग अनुच्छेद 324 और संबंधित चुनाव कानूनों के तहत परिकल्पित अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में विफल रहता है, तो यह निस्संदेह संविधान के मूल में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों को अपूरणीय क्षति पहुंचाने जैसा होगा।”

उन्होंने चार संबंधित मुद्दों की ओर इशारा किया

1. चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने वाली किसी भी गतिविधि में भाग लेने वाले लोक सेवक केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों और अन्य केंद्रीय और अखिल भारतीय सेवाओं के संबंधित आचरण नियमों का उल्लंघन करते हैं।

2. आईपीसी की धारा 171सी के तहत, “जो कोई भी स्वेच्छा से किसी चुनावी अधिकार के स्वतंत्र प्रयोग में हस्तक्षेप करता है या हस्तक्षेप करने का प्रयास करता है, वह चुनाव में अनुचित प्रभाव डालने का अपराध करता है”। किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण के लिए लोक सेवकों को ऐसी गतिविधि के लिए मजबूर करना न केवल प्रासंगिक चुनाव कानूनों के तहत बल्कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत भी दंडनीय है।

3. भारत सरकार, गृह मंत्रालय कार्यालय ज्ञापन संख्या 25/44/49/स्था. दिनांक 10 अक्टूबर 1949 में कहा गया है, “सरकारी सेवकों के आचरण नियमों के नियम 23 (I) के दायरे पर ध्यान आकर्षित किया जाता है, जिसमें कहा गया है कि कोई भी सरकारी सेवक किसी भी राजनीतिक आंदोलन में भाग नहीं लेगा, सहायता में सदस्यता नहीं लेगा या किसी भी तरह से सहायता नहीं करेगा।” भारत में”। ये निर्देश मेरे द्वारा व्यक्त की गई चिंता के संबंध में विशेष रूप से प्रासंगिक हैं।

4. कम से कम चार केंद्रीय मंत्रियों के आगामी राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने की खबर है। केंद्र सरकार के अधिकारियों को ऐसी गतिविधि में तैनात करना जो चुनाव में सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के लिए प्रचार करने के बराबर है, चुनाव कानूनों के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत स्पष्ट रूप से अयोग्यता को आकर्षित करेगा, जिसकी ईसीआई को तत्काल जांच करनी चाहिए।

केंद्र सरकार ने, अपने अधिकारियों को “विकसित भारत संकल्प यात्रा’ के माध्यम से पिछले नौ वर्षों के दौरान एनडीए सरकार की उपलब्धियों का प्रदर्शन/जश्न मनाने” के लिए उक्त निर्देश जारी करके जो मिसाल कायम की है, उससे प्रत्येक राज्य में राजनीतिक नेतृत्व को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। ऐसा ही करने के लिए, राज्य सरकारें भी, जल्द ही विधानसभा चुनावों के लिए, अपने अधीन नियुक्त, अधिकारियों को उनके लिए प्रचार करने का निर्देश दे सकती हैं? जिससे अराजकता और लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण होगा, जो हमारे संविधान में परिकल्पित चुनावी प्रणाली के लिए केंद्रीय आवश्यक तत्व हैं। आयोग निष्क्रिय रहकर, ऐसी संभावित खतरनाक प्रक्रिया को बढ़ावा देने का जोखिम नहीं उठा सकता।

यदि आयोग अनुच्छेद 324 और संबंधित चुनाव कानूनों के तहत परिकल्पित अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में विफल रहता है, तो यह निस्संदेह संविधान के मूल में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों को अपूरणीय क्षति पहुंचाने जैसा होगा?

लगता है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी अर्थात मोदी जी को चुनाव जिताने में मदद करेंगे, IAS अफसर?

IAS प्रजाति के दोस्तों, सावधान! अभी आप “रथ प्रभारी” बने हैं, कल आप “बूथ प्रभारी” भी बना दिए जाओगे?

कुर्सी के लिए चाटुकारिता करते-करते, अब आपकी हैसियत यही रह गई है, भावी “रथ चालक” IAS महोदय?

केंद्र सरकार के द्वारा इस तरह का ऐतिहासिक कदम उठाना यह इशारा करता है की केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की हवा पूरे देश के आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर टाइट हो चुकी है और आने वाले लोकसभा चुनाव में देश का माहौल मोदी सरकार के विपरीत दिख रहा है ?

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