मीडिया टुडे न्यूज़। देश में राज्यसभा वोटिंग से यह सिद्ध हुआ, कि मोदी के पास सत्ता पाने के लिए “साम-दाम-दंड-भेद” की सभी नीतियां तो है। परन्तु मोदी की राजनीति का पूर्णतः नैतिक पतन हो चुका है।
वर्तमान राजनीति को मोदी ने अब तक के सबसे निचले स्तर तक पहुंचा दिया है। सत्ता पाने के लिए मोदी अब किसी भी हद तक गिरने से हिचक नहीं रहे है। हाल ही में चंडीगढ़ चुनाव इसका जीता-जागता सबूत है?
अब यह सारा खेल अकेले मोदी खेल रहे है, यह कहना गलत होगा? सांसद-विधायक खरीदने के लिए जो करोड़ों-अरबों रुपयों की सौगात दी जा रही है, पर्दे के पीछे उनके चहेते कारोबारी मित्र भी अवश्य शामिल होगे? अन्यथा कुछ लाख महीनें की सहूलियत पाने वाला प्रधानमंत्री करोड़ों-अरबों रुपयों का लेन-देन भला कैसे कर सकेगा? यहीं कारण है, कि विपक्षी दलों के सांसदों व विधायकों को आज किसी भी कीमत पर खरीदा जा रहा है।
आम जनमानस के लिए भी अब यह प्रश्न खड़ा होता जा रहा है, कि वो विपक्ष को वोट करें, तो किस विश्वास पर करें? अपने को देशभक्त कहने वाले नेता कब जनता के वोट को ठेंगा दिखाकर तराजू में तुलने को बैठ जाये, यह कहना भी मुश्किल होता जा रहा है। कहना पड़ेगा, कि सचमुच आज मोदी व उनके कारोबारी मित्रों ने धन व बल से लोकतंत्र को गर्त में पहुंचा दिया है। आज देश का कर्ज 2014 के मुकाबले कई हजार गुना बढ़ चुका है जिसके कारण आम जनता को महंगाई का अप्रत्याशित सामना करना पड़ रहा है।
इस विषय पर विपक्षी दलों ने अपनी चिंता सार्वजनिक रूप से जाहिर की है, कि अगर मोदी 2024 को पुनः सत्ता में आये, तो लोकतंत्र शायद ही बचेगा? वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए उनका यह कहना भ्रामक नहीं है।
लोकतंत्र को बचाने के लिए अभी भी उम्मीद की एक किरण बाकी है? जिसकी चाबी देशवासियों के हाथों में है। यदि हम सचमुच अपने देश से प्यार करते है, और यह सभी कुछ रोकना चाहते है, तो देश की जनता को लोकसभा चुनाव में मतदान सोच समझ कर करना होगा।