“विदुर विद्वान चाचा चाणक्य ही विभीषण निकले”

मीडिया टुडे न्यूज़। बात थोड़ी पुरानी है सन् 2015 में छः पार्टियों जनता दल (यू), समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल (सेक्यूलर), समाजवादी जनता पार्टी का विलय होने वाला था।
जनता परिवार के इस विलय का ऐलान दिल्ली में जनता दल (यूनाइटेड) के तत्कालीन अध्यक्ष शरद यादव ने किया था। उन्होंने ये घोषणा भी की, कि इस नए दल के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव होंगे।
लालू यादव ने इस विलय के लिए नीतीश कुमार, शरद यादव, एचडी देवगौड़ा जैसे सभी नेताओं को मना लिया था। लेकिन उस समय समाजवादी पार्टी अपने आंतरिक कलह से गुजर रही थी। नेताजी मुलायम सिंह यादव के ढलती उम्र और खराब स्वास्थ्य के कारण पार्टी में दो गुट हो गये थे। एक गुट अमर सिंह के साथ मिलकर अखिलेश यादव को किनारे लगाने के लिए नेताजी के कान भर रहा था। जिसमें उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता, भाई शिवपाल यादव, अमर सिंह जैसे लोग व इनके अन्य सिपहसालार थे।
दूसरे गुट का नेतृत्व स्वयं अखिलेश यादव ही कर रहे थे। जो उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे। इस गुट में उनके चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव थे। जिन्हें उस समय अखिलेश यादव का चाणक्य कहा जाता था। पारिवारिक लड़ाई तो अखिलेश यादव जीत जाते हैं।‌
लेकिन उसके ठीक पहले हुई जनता पार्टी की एकता टल जाती है। जिसके अध्यक्ष नेताजी ही बनने वाले थे। शिवपाल यादव ने बताया था कि नेताजी को यह पद ठुकराने के लिए प्रो. रामगोपाल यादव ने ही रजामंद किया था। क्योंकि रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय प्रताप यादव और पुत्रवधू रिचा यादव पर CBI की जांच चलने वाली थी। अतः भाजपा के दबाव में आकर उन्होंने नेताजी को जनता पार्टियों की एकता के खिलाफ भड़का दिया। और विलय होते होते रह‌ गया।
जनता प्रोफेसर रामगोपाल यादव को समाजवादी पार्टी का विचारक, थिंकटैंक, रणनीतिकर्ता इत्यादि समझती रही। लेकिन जब थोड़ा बहुत छान-बीन किया तो असलियत इसके विपरित मिली। पता चला कि वे दिल्ली में रहकर लखनऊ के समाजवादी पार्टी की राजनीति को भाजपा के हिसाब से सेट कराते हैं।
ये बात बिल्कुल सही है कि प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने ही RJD, JDU, RLD, SP सहित छः पार्टियों का विलय नहीं होने दिया। रामगोपाल यादव समाजवादी पार्टी में रहते हुए भाजपा के स्लीपर सेल का काम करते हैं।‌ वे सपा और भाजपा के बीच एक सेतु (पुल) का कार्य करते हैं। इस बात को दीपक शर्मा, अशोक वानखेड़े, प्रो. रविकांत जैसे बहुत से पत्रकारों ने भी कहा है।
इस बार भाजपा नहीं चाहती थी कि सपा और कांग्रेस का गठबंधन हो। इसके लिए रामगोपाल यादव को लगा दिया गया था, लेकिन अखिलेश यादव ने महसूस किया कि उनके इस विश्वासपात्र में उसका निजी स्वार्थ आड़े आ रहा है जो पार्टी के लिए घातक है।‌ अतः उन्होंने रामगोपाल यादव की बात को खारिज करते हुए कांग्रेस से गठबंधन कर लिया।
प्रोफेसर रामगोपाल यादव राज्यसभा सांसद हैं, दिल्ली में रहते हैं। वे दिल्ली गये, उसके बाद लखनऊ में CBI के ऑफिस में दिल्ली से आदेश आया और अखिलेश यादव के खिलाफ कोई पुरानी खनन की फाइल खुलने की चर्चा शुरू हुई, जिसके तहत CBI ने उन्हें अपने ऑफिस में पूछताछ के लिए बुलाया।
प्रोफेसर रामगोपाल यादव क्या हैं? ये पढ़कर आप तय कीजिये। अभी तो बहुत से जासूस, और खलनायक भरे पड़ें हैं, जिन्हें आप नायक या चाणक्य मानते हैं। फिर वो शे’र याद आ गया -:
“हर आदमी में होते हैं, दस बीस आदमी।
जिसको भी देखना हो दो-चार बार देखिये।।” ………….!

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