राजस्थान में विधानसभा चुनावो को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने 124 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, वहीं कांग्रेस द्वारा भी 76 उम्मीदवारों की घोषणा की जा चुकी है।
इन उम्मीदवारों की घोषणा के बाद राजनीतिक जानकार एक बार फिर से आकलन करने में जुट गए हैं! देखने लायक बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी में पहली सूची में 41 उम्मीदवारों की घोषणा के बाद लगभग 20 चुनाव क्षेत्र में विद्रोह के हालात थे और विद्रोह करने वाले ज्यादातर वसुंधरा समर्थक थे।
ऐसा राजनीतिक जानकार कहते हैं
लेकिन दूसरी सूची में भारतीय जनता पार्टी ने वसुंधरा राजे की उपेक्षा को समायोजित करने की कोशिश की, लेकिन इसके बावजूद इस सूची के आने के बाद भी कई चुनाव क्षेत्र में विद्रोह के हालात है।
दरअसल चित्तौड़ और राजसमंद दो ऐसे जिले हैं यानी मेवाड़ का क्षेत्र जहां सबसे ज्यादा टिकट वितरण के बाद अंतर विरोध है।
इन चुनाव क्षेत्र में मुख्यतः प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी और भारतीय जनता पार्टी द्वारा उभारी जा रही नई नेता महारानी दिया कुमारी के द्वारा बताए गए उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है।
और अभी वर्तमान समय में मेवाड़ का चुनाव क्षेत्र विद्रोह की प्रयोगशाला बन गया है? चित्तौड़ में चंद्र भान आक्या राजसमंद में दिप्ती माहेश्वरी के खिलाफत, नाथ द्वारा में पुराने उम्मीदवारों द्वारा मेवाड़ राजघराने के खिलाफत, उदयपुर में बुजुर्ग संघी नेता तारा चंद जैन के खिलाफ पूर्व महापौर पारस सिंघवी की खिलाफत सड़कों पर नजर आ रही है।
यही नहीं इसके अलावा भी सीकर, नागौर, मकराना, बूंदी जैसे कई चुनाव क्षेत्र में भी भारतीय जनता पार्टी के लोग खुले में विद्रोह कर रहे हैं।
बूंदी में अशोक डोगरा के विरोध को छोड़कर ज्यादातर चुनाव क्षेत्र में विरोध करने वाले लोग वसुंधरा समर्थक हैं?
उसके समानांतर कांग्रेस में घोषित उम्मीदवारों की इतनी खिलाफत देखने में नहीं आ रही है। सिर्फ जयपुर के मालवीय नगर में कुछ अंतर विरोध की खबरें थी, वरना कमोबेश सतह पर असंतोष नजर नहीं आ रहा है।
कुछ राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जब सत्ता में आने की संभावना होती है तो उस पार्टी के लोगों में बगावत ज्यादा होती है। कुछ लोग यह भी मानते हैं प्रयोग करने पर पुराने लोगों की खिलाफत का सामना करना पड़ता है।
कांग्रेस ने जहां अपने पुराने स्वयं सिद्ध उम्मीदवारों को प्राथमिकता देने का मन बनाया है और जिस तरह अशोक गहलोत और पायलट ने एक अघोषित समझौता कर लिया है कि दोनों एक दूसरे के समर्थक उम्मीदवारों को टिकट दिलाने का विरोध नहीं कर रहे हैं।
कांग्रेस द्वारा ऐसे मे सुनील कोनोगुलू द्वारा जारी सर्वे के आधार पर जो टिकट देने की बात की गई थी वह भी गलत साबित हो रही है और अशोक गहलोत सचिन पायलट के साथ मिलकर फिर पुरानी टीम के साथ किला लड़ाते हुए नजर आ रहे हैं।
कुछ राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है की विद्रोह भारतीय जनता पार्टी में हिमाचल प्रदेश में था, इसके दुष्परिणाम उसे भुगतान पड़े थे और कर्नाटक में अभी राजस्थान के चुनाव प्रभारी बी एल संतोष जो कर्नाटक के भी चुनाव प्रभारी थे। उन्होंने कुछ प्रयोग किए थे उनके चलते कर्नाटक में भी भारतीय जनता पार्टी को भारी झटका लगा था।
उत्तराखंड में कांग्रेस द्वारा हरीश रावत की नहीं मानकर नए लोगों के हिसाब से कुछ प्रयोग करे थे जहां उसे भी पराजय का घूट पीना पड़ा।
गुजरात में यह प्रयोग सफल रहा था, लेकिन उनका कहना है उसकी वजह यह थी कि वहां जो सत्ता के खिलाफ एंटी इनकम बंसी थी, वह मोदी के चेहरे से पाट दी गई थी और मोदी इतनी बड़ी फिगर थे कि वहां असंतोष नहीं पैदा हो पाया।
क्योंकि वहां के सब प्रादेशिक नेता मोदी के करिश्मे पर ही आधारित थे?
इसके विपरीत अन्य प्रदेशों में स्थानीय क्षत्रपो
की भी अपनी जमीन है और जब उनको दरकिनार किया जाता है तो दुष्परिणाम आते हैं।
कांग्रेस लगातार हारी हुई कुछ सीटों पर प्रयोग कर सकती है पर देखना है क्या वह साहस कर पाएगी?फिलहाल बचे हुए चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवारों की घोषणा की प्रतीक्षा अंतिम लड़ाई के निष्कर्ष पर पहुंचा पाएगी?