मोदी सरकार में बढ़ा देश पर 100 लाख करोड़ का कर्ज़

मीडिया टुडे न्यूज़। मोदी देश के 15 वें प्रधानमंत्री हैं लेकिन जो काम उनसे पहले 14 प्रधानमंत्री नहीं कर सके उन्होंने अपने मात्र नौ साल के कार्यकाल में कर दिखाया और देश का कर्ज 55 लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर 155 लाख करोड़ रुपए पहुंचा दिया है।

मोदी सरकार ने देश पर 100 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बढ़ाया अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया है इसलिए उन्हें देश की अर्थव्यवस्था पर एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। उनका कहना था कि मोदी ने जब देश की बागडोर संभाली तो देश पर महज 55 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था लेकिन यह अब तीन गुना बढ़ गया है। उन्होंने कहा, नरेंद्र मोदी इस देश के 15वें प्रधानमंत्री हैं और यकीन मानिए उन्होंने वह कर दिखाया जो उनसे पहले 14 प्रधानमंत्री नहीं कर पाए। आज़ादी के 67 साल में जहां 14 प्रधानमंत्रियों ने मिलकर 55 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया, वहीं मोदी ने अपने नौ साल के कार्यकाल में इसको तिगुना करके 155 लाख करोड़ रुपये पहुंचा दिया। मतलब नौ साल में देश का कर्ज 100 लाख करोड़ रुपये से भी ज़्यादा बढ़ गया है।

आज हालत यह हो गई है कि देश कर्ज में डूब गया है और देश पर 100 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बढ़ गया है। इसका मतलब है कि आज हर हिंदुस्तानी पर-मतलब पैदा हुए नवजात शिशु के सिर पर भी क़रीब 1.2 लाख का कर्ज है।

*मोदी ने अपने कार्यकाल के हर सेकंड चार लाख रुपये का क़र्ज़, हर मिनट 2.4 करोड़ का क़र्ज़, हर घंटे 144 करोड़ का क़र्ज़, 3456 करोड़ रुपये हर दिन का क़र्ज़, हर महीने 1.03 लाख करोड़ और हर साल 12.47 लाख करोड़ इस देश पर लाद दिया है। आलम यह है कि हमारे यहां आज दुनिया में सबसे महंगी रसोई गैस, तीसरा सबसे महंगा पेट्रोल और आठवां सबसे महंगा डीजल देश में बिक रहा है।*

गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी बड़ी-बड़ी बातें करते थे, पर अब नौ साल से प्रधानमंत्री के पद पर रहकर अपने आर्थिक कुप्रबंधन से अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया है और देश पर महंगाई, बेरोज़गारी और क़र्ज़े का बोझ लाद दिया है।

देश को भारी कर्ज में डूबा देने के बाद मोदी आपको समझना पड़ेगा कि सिर्फ़ फेंका फेंकी और शो बाजी से काम नहीं चलने वाला मोदी सरकार बिना विलंब के आज हिंदुस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्था पर श्वेतपत्र जारी करे।

*समस्या अब ऋण चुकाने की भी लगातार बढ़ रही है। देश पर जितना ऋण है उसको चुकाने में हर साल 11 लाख करोड़ का ब्याज ही दिया जा रहा है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में ऋण स्थिरता नकारात्मक हो गई थी और तब सरकारी क़र्ज़ जीडीपी का 52.5 प्रतिशत था जो अब बढ़ कर 84 प्रतिशत पहुंच गया है, इसीलिए ऋण चुकाने की क्षमता भी अब संदिग्ध है। क़र्ज़ के बोझ तले गरीब दब रहा है लेकिन देश को कर्ज में डूबने का पूँजीपतियों को फायदा मिल रहा है। भयावह क़र्ज़ के बोझ के तले देश का आम आदमी दबा जा रहा है लेकिन इसका लाभ गरीब या मध्यम वर्ग को नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के चंद पूंजीपति मित्रों को ही मिल रहा है। देश में आज भी 23 करोड़ लोग गरीबी की सीमा रेखा से नीचे हैं, 83 प्रतिशत लोगों की आय घटी है, एक साल में क़रीब 11,000 से ज़्यादा लघु मध्यम उद्योग-एमएसएमई बंद हुए हैं और अरबपतियों की संख्या 2020 के 102 से बढ़कर 2022 में 166 हो गई।*

देश में सबसे निचली 50 प्रतिशत जनता के पास मात्र तीन प्रतिशत संपत्ति है लेकिन जीएसटी का कुल 64 प्रतिशत भुगतान करते है। इसके विपरीत देश के सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों के पास 80 प्रतिशत संपत्ति है लेकिन वे जीएसटी का मात्र तीन प्रतिशत भुगतान करते हैं। सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि भारत का ऋण और जीडीपी का अनुपात 84 प्रतिशत से ज़्यादा है जबकि बाकी विकासशील एवं उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का औसतन 64.5 प्रतिशत है।

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