मीडिया टुडे न्यूज़। Electoral Bond से संबंधित नामो की सूची Supreme Court ने Sbi से 6 मार्च तक जानकारी मांगी थी इस पर शायद मोदी सरकार के दबाव में एसबीआई ने जानकारी देने हेतु 30 जून तक सुप्रीम कोर्ट से मोहलत मांगी गई है। क्योंकि अगर जानकारी देनी पड़ती तो नरेंद्र मोदी सत्ता नंगी हो जाती जिससे आने वाले Lok Sabha Election में भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ता। इसलिए, चुनाव के बाद नाम बताया जाएगा।वरना, देश की जनता को पता चल जायेगा कि बीजेपी के उस आपराधिक गिरोह को, जिसे वह परिवार बताते हैं, पाल कौन रहा है। मोदी सत्ता को पैसा देने वालों ने कितना माल दबाया। देश के लोकतंत्र को कैसे और क्यों खत्म किया?
इनमें से आधे, यानी 22 हजार से ज्यादा तो 2019 में मोदी को चुनाव जितवाने वाले थे। क्यों 6 मार्च तक भारतीय स्टेट बैंक इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में चुनाव आयोग को जानकारी नहीं देगा?
आख़िर क्यों एसबीआई को चार महीने का समय चाहिए?
सहज बुद्धि से सोचें तो यही लगता है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि लोकसभा का पूरा चुनाव निकल जाए और जनता को पता ही नहीं चले कि 16,000 करोड़ का चंदा इस बॉन्ड के माध्यम से किसने किस किस को दिया। इस बात में अब कोई संदेह नहीं रहा कि यह चंदा नहीं था, फ़्रॉड था। घोटाला था। क्या फ़्रॉड के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का यही पालन हो रहा है कि एक मामूली सी सूचि बनाने के लिए देश के सबसे बड़े बैंक को चार महीने का समय चाहिए?
आदेश तो साफ़ था कि 6 मार्च तक भारतीय स्टेट बैंक को सारे दस्तावेज़ चुनाव आयोग को देने हैं और 15 मार्च तक चुनाव आयोग को उसे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करना है। देखते रहिए, कब तक आपको यह जानकारी मिल पाती है।
पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट में साबित किया कि इलेक्टोरल बॉन्ड गैरकानूनी है।
लेकिन, तानाशाही सत्ता के आगे बिछ चुकी जनता बेसुध पड़ी है। निराश, धर्म के आगे बेबस।
सत्ता पर कोई सवाल नहीं।