आंख है तो जहान है- सीएचएमओ डॉ. निराला…

सारंगढ़।आंखें शरीर की एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग होती है,आंखों को हमेशा बचाकर रखना चाहिए। जन्म से लेकर जीवित रहते तक दुरुस्त रखना होता है। “आंखें है तो जहान है”, एक मिनट आंख बंद करके देख लीजिए हर उम्र में आंखों में तकलीफ हो सकती है जिले के तीनों ब्लॉक की कुल आबादी 7 लाख 17 हजार है जहां 720 गांव है। जन्म होते ही ट्रेंड स्टॉफ नवजात शिशुओं की आखों को क्लीन करते है जरूरत होने पर नेत्र चिकित्सा सहायक अधिकारी से भी आंख को चेक कराया जाता है। मां के दूध में नेत्र के लिए सभी पौष्टिक तत्व रहता है लेकिन 9 माह बाद नेत्र की ज्योति के लिए, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए साथ में आंत को दुरुस्त रखने के लिए, विभिन्न बीमारियों के बचाव के लिए “विटामिन ए” का घोल पिलाना जरूरी होता है जिसे प्रथम बार 9 माह में दूसरी बार डेढ़ वर्ष की उम्र में उसके बाद 5 वर्षो तक पिलाया जाता है जो नेत्र के लिए जरूरी है।
बच्चा जब स्कूल जाता है तब पालक एवं शिक्षक दोनों के लिए जरूरी होता है कि बच्चे की नेत्र ज्योति ठीक है कि नहीं, बच्चे को देखने में या पढ़ने में कोई परेशानी तो नही है ये सारी बातें जज करना होता है क्योंकि इतनी कम उम्र में बच्चा एक्सप्लेन करने में सक्षम नहीं होता है लेकिन जागरूक पालक इसे समझ जाता है और बच्चे की नेत्र परीक्षण विशेषज्ञ से कराते हैं। जरूरी होने पर चस्मा प्रदाय किया जाता है लेकिन जब बच्चा मिडिल स्कूल में जाता है, तब बच्चे की समझ बढ़ जाती है, चिकित्सक के इशारे को समझता है, इस कारण शासन स्तर से मिडिल स्कूल से सभी बच्चों की नेत्र परीक्षण कराने की योजना है। जिसे प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पदस्थ नेत्र चिकित्सा सहायक अधिकारी के माध्यम से जांच कराई जाती है। जांच उपरांत किसी बच्चे की दृष्टि में निकट या दूर दृष्टि पाई जाती है।उसे सुधारने हेतु चश्मे की नंबर दी जाती है।
जिले में 437 मिडिल स्कूल है जहां दर्ज बच्चे की संख्या 21634 है इसमें से 14652 बच्चों की जांच की गई है।जांच करने के बाद 483 बच्चों की आंखों में दृष्टि दोष पाई गई है। माह फरवरी तक 402 चश्मों का वितरण बच्चों को किया जा चुका है। जब उम्र 35 से 40 वर्ष के आसपास होती है इनको भी नजदीक के काम करने, पढ़ने में परेशानी होती है, इनका भी नेत्र परीक्षण करना होता है। इनकी भी दृष्टि बाधित होती है जिसे चश्मा पहन कर ठीक कर सकते है। जब उम्र 50 वर्ष के उपर होती है तब व्यक्तियों की नजरें धीरे से कम होने लगती है। केवल नजरें कम दिखती है।यह लोगों में अंधत्व का एक मुख्य कारण है, समाज में अंधत्व के असली कारण हैं इसे मोतियाबिंद के नाम से जानते है इसे ऑपरेशन करके ही ठीक किया जा सकता है।आजकल ऑपरेशन पश्चात नेंस प्रत्यारोपित कर दिया जाता है जिसमें चस्मा पहनने की आवश्यकता नहीं होती।माह फरवरी तक 379 लोगों की दोनों आंखों में मोतियाबिंद दर्ज की गई थी जिनका ऑपरेशन करा दिया गया है।सभी नेत्र चिकित्सा सहायक अधिकारियों के द्वारा फरवरी तक 19836 लोगों की आंख की जांच ओपीडी में की गई है।आंखों की सामान्य देखभाल चिकित्सकों एवं सीएचओ के द्वारा भी की जाती है।
जब उम्र 60 वर्ष के आस पास होती है तब एक समस्या और होती है जिसमें आंखों की नजरें धीरे धीरे कम होती जाती है लेकिन इसमें एक विशेष बात होती है नजरें कम होने के साथ साथ आंख में और सिर में बहुत दर्द होती है इस अवस्था को कांच मोतियाबिंद कहते है जो आंख में प्रेशर बढ़ जाने के कारण होता है। जिसके परिणाम स्वरूप आंख की कनेक्शन मस्तिष्क से कट जाती है और व्यक्ति अंधा हो जाता है और इस अवस्था में कोई उपचार नही हो पाता।इस कारण आंखों की जांच जल्दी हो जानी चाहिए। कांच मोतिया बिंद भी अंधत्व के एक प्रमुख कारण है, अभी 12 मार्च से 18 मार्च तक कांच मोतियाबिंद या ग्लूकोमा स्क्रीनिंग सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है ऐसे व्यक्ति जिनकी नजरें धीरे धीरे कम हो रही है और सिर में तेज दर्द होता है कृपया अपनी नजदीक के प्राथमिक स्वाथ्य केंद्र में जाकर अपनी आंख की जांच अवश्य करा लिया जाना चाहिए कि कही ग्लूकोमा तो नहीं हो रहा है।

सावधानियां:

आंख को अच्छे बनाए रखने के लिए विशेष सावधानियां बरतने की जरूरत है।नवजात शिशुओं को मां का दूध, विटामिन ए की सिरप पिलानी है।आंख को चोट से बचानी है, खेलते समय, काम करते समय आंखों की विशेष सुरक्षा की जरूरत होती है।जब हम चलते हो, गाड़ियों की वजह से आंख में धूल पड़ जाए या कोई फॉरेन बॉडी आंखों में पड़ जाए तो आंख को रगड़ना नहीं चाहिए।रगड़ने से फोरेन बाडी अंदर कॉर्निया मे धंस सकती है जिस से आंख में फूला पड़ जाती है और इसकी निशान स्थायी होता है। ऑपरेशन से ही ठीक किया जा सकता है।इसमें कॉर्निया को बदलना पड़ता है कॉर्निया मिलती नहीं है, जो नेत्र दान करते है उनकी कॉर्निया लेकर प्रत्यारोपण करना होता है, इस कारण नेत्र दान करने की प्रक्रिया होनी चाहिए।आदमी की मृत्यु के बाद शरीर को दफना दी जाती है या जला दी जाती है। जागरूक व्यक्तियों को अब आगे आना चाहिए और नेत्र दान करनी चाहिए। जिससे जरूरत मंद को कॉर्निया मिल सके।एक बात और विशेष रहती है जब कभी भी आंख में कोई तकलीफ होती है तब दुकान से लेकर कोई दवाई अपनी मर्जी से नहीं डालनी चाहिए। नेत्र की परेशानी हो तो नेत्र रोग विशेषज्ञ से जरूर संपर्क करनी चाहिए इस तरह हम कह सकते है “आंख है तो जहान है”।

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