What exactly is GM Genetically Modified? Know its disadvantages and advantages GM जेनेटिकली मोडिफाइड असल में क्या बला है इसके नुकसान और फायदे क्या होंगे जानिए

विनाशकारी और जहरीली जीएम (Genetically Modified) फसलों को आखिल क्यों लागू करना चाहती है केंद्र सरकार

अभिषेक कुमार शर्मा

देश में जीएम ( Genetically Modified) सरसों पर विगत 20 वर्षों से इसके पर्यावरण पर होने वाले कुप्रभाव की आशंकाओं को लेकर विरोध हो रहा है। 2002 में भारत में इसके बीज को भारती किस वरुणा को पूर्वी यूरोप की किस्म अली हीरा– 2 से क्रॉसिंग एवं अनुवांशिक संरचना में परिवर्तन के द्वारा तैयार कर लिया गया था 2017 में भारत की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमिटी ने देश में इस जीएम (Genetically Modified) सरसों की व्यवसायिक खेती करने की इजाजत दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इसके पर्यावरण खतरों की आशंका को लेकर पर्यावरण विदों द्वारा दायर याचिका के बाद मामला अदालत की तारीख पर चला गया था।

जीएम (Genetically Modified) फसलें क्या हैं?

जैनेटिक इंजीनियरिंग यानी जीनियागरी के द्वारा किसी भी जीव या पौधों के जीन को दूसरे पौधों में डाल कर एक नई फसल प्रजाति विकसित कर सकते हैं। मतलब यह कि अब दो अलग-अलग प्रजातियों में भी संकरण किया जा रहा है। वैसे प्रकृति में जीनों का जोड़-तोड़ चलता रहता है। इधर के जीन उधर और उधर के इधर। पर प्रकृति में यह बड़ी धीमी प्रक्रिया है, कई हजारों लाखों वर्षों में ये बदलाव आते हैं क्योंकि प्रकृति पूरी तरह तसल्ली करके ही किसी पौधे या जानवर या सूक्ष्मजीव को पनपने देती है, वरना उसे खत्म कर देती है लेकिन आज जैनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से जीनों को एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में डाला जा रहा है। इस प्रकार प्राप्त फसलों को पारजीनी फसलें यानी जैनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप (Genetically modified crops) कहा जाता है।

यदि और भी सरल और सत्यता के साथ कहा जाये तो किसी भी फसल का रंग, आकर, स्वाद, गुण आदि को अप्राकृतिक रूप से अधिक मुनाफे के लिए बदल देना।

प्रकृति से इस खिलवाड़ के कारण जो विनाश होगा उसकी कल्पना भी हम या हमारी सरकार नहीं कर सकती ।

किसी बीमारी को इलाज कर ठीक किया जा सकता है परन्तु जीएम फसलो के कारण जो अनुवांशिकी या Genetic बदलाव हमारी आने वाली पीढियों में होंगे उसको ठीक करना असंभव है ।

जीएम Genetically Modified सरसों ही क्यों?
हम भारतवासी रिफाइंड से अधिक सरसों के तेल का प्रयोग करते है और राजीव भाई की बात सुनने के बाद तो रिफाइंड तेल अन्य बाजारू घटिया तेलों की बिक्री पर असर पड़ा है

अब इस सरसों के पीछे षड्यंत्र शुरू हो गया है जिसके अंतर्गत अगर हम रिफाइंड और अन्य कचरा तेल न खाकर यदि शुद्ध सरसों के तेल का ही प्रयोग करें और वो सरसों Genetically Modified हो और हमारा और हमारी आने वाली पीढियों का समूल नाश हो जाये? बहुत से पर्यावरणविद का यही कहना है और बीमार होने के बाद हम फार्मा कंपनियों का चारा या ग्राहक बन जायेंगे जो हमारे लिए नुकसानदायक रहेगा।

दुनिया के 38 देशो मे GM फ़ूड BAN है वो अब देश मे आने की मंजूरी अधिकारक रूप मे मिल गयी?
न्यूज लिंक: Central Regulator Poised to give its Nod to GM Mustard: Activist Raise Objection -The Times Of India —

.http://toi.in/EozTeb/a18ag

और दुनिया मे अमेरिका से लेके साउथ अफीका जेसे विकसित और आम देश मे भी BAN है वो अब जहर भारत के बाजार मे बिकेगा?

Poison on the Platter (Hindi) GM Food
GM फ़ूड कितना बड़ा खतरा है दुनिया के लिए?
GM फ़ूड किन किन देशों में पूरी तरीके से बैन है?
वीडियो लिंक :—

https://archive.org/details/PoisonOnThePlatterHindiGMFoodSegment0X264

जीएम सरसों खतरनाक कभी इसकी मंजूरी ना दें , एसजेएम ने किया था विरोध

जेनेटिकली मोडिफाइड जीएम सरसों की किस्म को एनवायरमेंटल रिलीज की सिफारिश करने पर स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) ने जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमिटी (जीईएसी) के खिलाफ पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखा जिसमें मंच ने इसे खतरनाक बताते हुए सरकार से आग्रह किया था, कि जीएम बीज से खेती की अनुमति नहीं दे। मंच के संयोजक अश्विनी महाजन ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को लिखे पत्र में (जीईएसी) पर गैर जिम्मेदारी से काम करने का आरोप लगाया था।

डीएचएम -11 स्वदेशी नही

स्वदेशी जागरण मंच ने इस दावे को झूठा बताया कि जीएम सरसों की किस्म देश में विकसित की है। बहुराष्ट्रीय कंपनी बायर की सहयोगी प्रोएग्रो सीड कंपनी ने 2002 में जीएम सरसों की ऐसी ही किस्म के लिए अनुमति मांगी थी जिसे वैज्ञानिक दीपक पेंटल ने डीएमएच 11 किस्म के नाम पर विकसित किया है। आईसीएआर ने उसके बेहतर होने का दावा खारिज कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट को जीएम या जेनेटिकल मॉडिफाइड सरसों के पौधों से फूल आने से पहले नष्ट करने की याचिका पर निर्णय करना है। देश में जीएम सरसों डीएमएच 11 की व्यवसाय खेती पर रोक लगाने का मामला पूर्व से ही विचाराधीन है। याचिकाकर्ता ने इसके फूलों एवं बीज से पर्यावरण को खतरा बताया है देश में अनुवांशिक खाद्य फसलों की व्यवसायिक खेती की अनुमति को लेकर पिछले दो दशक से विभिन्न मंचों पर बहस जारी है देश के अधिकांश पर्यावरणविद एवं कृषि जानकार अनुवांशिक परिवर्तित खाद्य खेती में फायदा कम नुकसान अधिक मानते आए हैं लेकिन भारत सरकार जीएम सरसों की फसल उत्पादन के लिए इतनी अधिक उतावली में है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति जीएस को व्यवसायिक खेती के लिए अनुवांशिक संशोधित जीएम सरसों की मंजूरी मिलते जिसके बीज के उत्पादन को मौन स्वीकृति दे दी है इस फसल को विकसित करने वाले संस्थान ने फसल बिजली प्रयोग के लिए उपलब्ध करा दिया था विवादित होने के बाद भी इस पर यह ख्याल नहीं रखा गया कि उत्पादकता लेने संबंधी प्रयोग खुले में करने की बजाय चारदीवारी , पॉली या ग्रीन हाउस में किया जाए।

यदि भारत में सरकार के इस मुद्दे पर उतावले पन पर बात करें तो 2020-21 में देश के खाद्य तेल की खपत में सरसों तेल की हिस्सेदारी 14.1 फ़ीसदी की रही है वर्ष 2021 में भारत सरकार ने अकेले पॉम एवं सूरजमुखी के तेल आयात पर 19 अरब डालर की राशि खर्च की है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल का आयातक है। भारत अर्जेंटीना ब्राजील इंडोनेशिया रूस और यूक्रेन से अपनी आवश्यकता की पूर्ति करता है।

केंद्र सरकार पर्दे के पीछे रहकर इस विवादित मुद्दे पर बहुत अधिक परिणामों को जाने बगैर ही इसके व्यवसायिक खेती को बढ़ावा देने में जल्दबाजी कर रही है। देश के पंजाब, हरियाणा ,राजस्थान ,उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के लगभग 7.5 मिलियन हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में सरसों की खेती हो रही है। साथ ही इस फसल के फूलों के माध्यम से देश के कुल उत्पादन का 60 फ़ीसदी सरसों फूलों से मधुमक्खियों के माध्यम से तैयार हो रहा है जो कि उत्पादक किसान को अतिरिक्त लाभ उपलब्ध कराता है। रबी सीजन में राजस्थान मध्य प्रदेश एवं यूपी में सरसों की फसल में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज हुई है। भारत में प्रचलित बीजों के माध्यम से सरसों का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 1000 से 1200 किलो माना गया है जबकि वैश्विक उत्पादन जो कि (जीएम) अनुवांशिक बीजों से होता है प्रति हेक्टेयर 2000 से 2200 किलोग्राम माना जाता है। देश का किसान पर्याप्त सिंचाई उपलब्धता एवं नई बीज किस्मों से अब प्रति हेक्टेयर 1800 किलो तक उत्पादन लेने लगा है जिसमें उनकी उत्पादन लागत न्यूनतम है। भारत में सरसों के बीज का न केवल खाद्य तेल में उपयोग होता है बल्कि इसकी पत्तियों का हमारे घरों में सब्जियों का एवं पशु चारे के रूप ने भी बहुत अधिक प्रयोग होता है।

सबसे महत्वपूर्ण जानने योग्य जो हमको मालूम होना चाहिए

विकसित जीएम सरसों टीएमएच 11 के उत्पादन आंकड़ों के मुकाबले भारतीय फसल बीज वरुण के उत्पादन आंकड़े बेहतर रहे हैं आज यदि डीएमएच 11 की बात करें तो यह अनुसंधान 20 साल पुराना हो चुका है, जबकि विकासशील देश डीएमए 4 का प्रयोग कर रहे हैं भारत में उपयोग के चर्चारत अनुसंधित जीएम सरसों डीएमएच 11 वैश्विक स्तर की आउट डेट्स है, जबकि पूर्णतया स्वदेशी कृषि अनुसंधान केंद्र में विकसित पूसा डबल जीरो 31 का उत्पादन 2200 किलो प्रति हेक्टेयर आ रहा है ऐसे में भारत सरकार को देश में जीएम सरसों की अनुमति के बजाय भारतीय विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान केंद्र में विकसित पूर्णतया स्वदेशी किस्मों को बढ़ावा देना चाहिए ना कि विदेशी देशों के इशारों पर देश की परंपरागत फसलों व बीजों को बर्बाद करना ।

कौन है ये शातिर लोग जो एक तरफ तो मधुमक्खीपालन को बढावा देने के लिए HoneyMission चलाकर #SweetRevolution लाना चाहते हैं और मधुमक्खियों से किसानों की फसलों में परागण कि क्रिया करवा कर आमदनी बढवाना चाहते हैं (या फिर ऐसा दिखा रहे हैं कि वो ऐसा करना चाहते हैं) और दूसरी तरफ जहरीली जीएम सरसों को स्वीकृति दे कर मधुमक्खीपालन को ही खत्म करना चाहते हैं❓

वो शायद ये नहीं जानते कि इस तरह के बीजों में जहर डाल दिया जाता है जिससे उन पर कीट ना बैठ सकें और चेपा जैसा रोग ना लगे।
जब इस तरह की सरसों पर रस चूसने वाला चेपा ही जीवित नहीं रहेगा तो मकरंद पीने वाली मधुमक्खी जीवित कैसे रहेगी ??

और इससे भी आगे सवाल ये है कि
इस फसल से तैयार सरसों का तेल व पशुओं को खिलाने वाली खल क्या जहरीली नहीं होगी❓

जब इसके प्रभाव से मधुमक्खी भी जीवित नहीं रह पाएगी तो मनुष्य का क्या हाल होगा इस पर विचार जरूर करिए।

आपके लोकसभा क्षेत्र के सांसद कितना जानते है जीएम फसलों के बारे में

देश में पढ़े लिखे के अलावा अनपढ़ और अंगूठा छाप सांसद भी घूम रहे है क्या आपको आपके क्षेत्र के सांसद से इस जीएम सरसों के विषय में बात की उन्हे इस विषय पर कितनी जानकारी है क्या वे इस जीएम फसलों के दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी रखते है या नही अगर नही रखते है तो ऐसे सांसद हमारे आने वाली नस्लों के लिए घातक और जिम्मेदार होंगे क्योंकि आपने रिमोट से चलने वाले या दूसरों के इशारों पर या बिना दुष्प्रभावों के जानकारी के लिए स्वीकृति दे दी। जैसा हमने कोरोना महामारी के समय देखा टिके के दुष्प्रभावों के बारे में किसी विधायक या सांसद ने इसकी जानकारी नहीं दी अब जब उसके दुष्प्रभाव सामने आ रहे है तब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा टिके के साइड इफेक्ट के लिए जनता ही जिम्मेदार है ।

बहरहाल हमे लगता है जनता के स्वास्थ्य से जुड़े मामले पर केंद्र सरकार को एक तरफा फैसला नहीं लेना चाहिए और जीएम तकनीक के फायदों से ज्यादा उसके होने वाले नुकसान पर विचार होना चाहिए एवं भारतीय अनुसंधान के वैज्ञानिकों व कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर गौर करना ज्यादा हितकर होता देश हित के लिए ।

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