मीडिया टुडे न्यूज़। Municipal elections 2024 महापौर चुनावों के लिए जनता के सीधे मतदान का अधिकार मिलने के बाद, रायगढ़ नगर निगम के सभी 48 वार्डों में राजनीतिक पार्टियों की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। दोनों प्रमुख पार्टियां, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस, जनता को अपने पक्ष में करने और जनसंपर्क मजबूत बनाने की कोशिशों में जुटी हुई हैं। इस बार के चुनावों में जहां भाजपा राज्य में सत्ता में है और स्थानीय निकाय में भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में है, वहीं कांग्रेस अपनी मौजूदा उपस्थिति का लाभ उठाने और अपने पिछले कार्यकाल की उपलब्धियों के बल पर जनता का समर्थन पाने की कोशिश में है।
कांग्रेस की रणनीति और चुनौतियां
कांग्रेस पार्टी, Municipal elections 2024 जो वर्तमान में रायगढ़ नगर निगम में सत्तासीन है, अपने पुराने कार्यों और विकास परियोजनाओं का हवाला देकर जनता को प्रभावित करने का प्रयास कर रही है। पार्टी के नेताओं का मानना है कि जनता को पिछले कार्यकाल में हुए विकास कार्यों का भरोसा दिलाना जरूरी है ताकि वे आने वाले चुनावों में उनके समर्थन में खड़ी हो सके। हालाँकि, कांग्रेस के सामने भी कई चुनौतियाँ हैं। पार्टी के भीतर आपसी मतभेद और कलह के कारण एकजुटता में कमी नजर आ रही है, जिससे आगामी चुनावों में कांग्रेस की स्थिति प्रभावित हो सकती है।
कांग्रेस को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके नेता और कार्यकर्ता चुनावी रणनीति में तालमेल बैठा सकें, ताकि भाजपा के बढ़ते प्रभाव के सामने एक मज़बूत विकल्प प्रस्तुत कर सकें। कांग्रेस की रणनीति के केंद्र में यह भी है कि वे जनता के बीच अपने स्थानीय मुद्दों पर बात करें और उनकी जरूरतों को प्राथमिकता दें। इसके लिए, कांग्रेस नेता वार्ड-वार्ड घूमकर जनता से सीधा संवाद स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि वे अपने विरोधियों के मुकाबले में मजबूती से खड़े हो सकें।
भाजपा की नई रणनीति और “ट्रिपल इंजन” की अवधारणा
राज्य में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने स्थानीय निकाय चुनावों में “ट्रिपल इंजन” की सरकार का नारा दिया है, जिसमें केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों में भाजपा की सरकार के संयोजन को जनता के लिए अधिक फायदेमंद बताया जा रहा है। भाजपा का यह दावा है कि यदि स्थानीय निकाय चुनावों में भी उनकी पार्टी को समर्थन मिलता है, तो राज्य और केंद्र की भाजपा सरकारों के साथ मिलकर विकास की गति को और तेज किया जा सकता है।
भाजपा का संगठनात्मक ढांचा और अनुशासन उनके सबसे बड़े लाभ माने जाते हैं, जो उन्हें कांग्रेस से अलग करते हैं। भाजपा के कार्यकर्ता प्रत्येक वार्ड में मतदाताओं के साथ सक्रिय रूप से संपर्क कर रहे हैं और सरकार की विभिन्न योजनाओं और उपलब्धियों को गिनवा रहे हैं। भाजपा का मानना है कि जनता, उनके राज्य और केंद्र में हुए कार्यों को देखते हुए स्थानीय निकायों में भी उन्हें समर्थन देगी। हालांकि, “ट्रिपल इंजन” की अवधारणा को जनता कितना समझती है और स्वीकार करती है, यह देखना बाकी है।
वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का हस्तक्षेप और संगठन बनाम व्यक्ति की बहस
इन चुनावों के दौरान भाजपा में एक बड़ी चर्चा का विषय यह भी बन गया है कि पार्टी में संगठन की अहमियत ज्यादा है या व्यक्ति की। हाल ही में भाजपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता, जो पहले भी भाजपा के टिकट पर वार्ड का चुनाव लड़ चुके हैं, ने अपने चुनाव लड़ने के लिए पोस्टरों के माध्यम से दावा किया है, जबकि अभी तक किसी प्रकार की चुनावी अधिसूचना जारी नहीं की गई है और न ही वार्डों का आरक्षण तय हुआ है।
यह घटना भाजपा के भीतर संगठनात्मक संरचना और अनुशासन पर सवाल खड़े करती है। भाजपा को इस मुद्दे पर स्पष्टता देनी होगी कि क्या पार्टी में किसी वरिष्ठ नेता के दबाव में पहले से टिकट का वितरण किया गया है या नहीं। इससे पार्टी में एक अंदरूनी असंतोष का संकेत मिल रहा है, जिससे पार्टी की छवि पर भी प्रभाव पड़ सकता है। कई लोग यह मानते हैं कि भाजपा के ऐसे वरिष्ठ नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं पार्टी की साख को कमजोर कर रही हैं और इससे भाजपा की अनुशासनात्मक पहचान पर भी प्रश्न उठ रहे हैं।
कांग्रेस की कलह और भाजपा का कमजोर विरोध
इन चुनावों में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है पार्टी के भीतर की गुटबाजी और मतभेद। राज्य में कांग्रेस की हालिया गतिविधियों को लेकर कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष है, जिससे पार्टी की एकता कमजोर हो रही है। कई कांग्रेस नेता पार्टी के संगठनात्मक ढांचे से असंतुष्ट हैं और यह आंतरिक कलह चुनावों में उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
वहीं दूसरी ओर, भाजपा भी अपने विरोध की मजबूती को लेकर सवालों के घेरे में है। राज्य में सत्ता में आने के बाद भी भाजपा अभी तक कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पाई है, जो उसे कांग्रेस के मुकाबले में एक मज़बूत विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर सके। जनता यह देखना चाहती है कि भाजपा के पास स्थानीय मुद्दों पर ठोस रणनीति है या नहीं।
जनता की नजर में दोनों पार्टियां और चुनावी मुद्दे
जनता इस बार के चुनावों में बहुत ही सजग है और वह दोनों पार्टियों के कार्यों को लेकर अपने निर्णय को सोच-समझकर लेने के मूड में है। कांग्रेस और भाजपा के बीच के इस संघर्ष में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे अपना समर्थन देती है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि दोनों पार्टियों को यह समझना होगा कि जनता की समझ और अपेक्षाओं के बिना चुनाव जीतना संभव नहीं है। जनता को लोकल मुद्दों पर बात चाहिए, जैसे कि सफाई व्यवस्था, सड़कें, जल निकासी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं।
दोनों पार्टियों के लिए यह चुनाव केवल एक मौका नहीं, बल्कि एक परीक्षा है। जनता की सेवा के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण को लेकर लोग अब जागरूक हो चुके हैं। यदि पार्टियां जनता की असल जरूरतों को नजरअंदाज करती हैं, तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
निष्कर्ष
इस बार के चुनावों में जनता के पास सत्ता परिवर्तन का एक सशक्त विकल्प है, लेकिन इस विकल्प को जनता कैसे देखती है और उसे क्या चाहिए, यह दोनों पार्टियों को समझना होगा। कांग्रेस को जहां अपने कार्यकाल की उपलब्धियों को दिखाना होगा, वहीं भाजपा को अपने ट्रिपल इंजन सरकार के वादे को जनता तक सही तरीके से पहुँचाना होगा।
जनता इस बार सजग है और दोनों पार्टियों की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है। दोनों को यह समझ लेना चाहिए कि “यह पब्लिक है सब जानती है” – यानी जनता के फैसले पर कोई दबाव नहीं डाला जा सकता।